गीतिका
गीतिका …!
आधार छंद गीतिका ।
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
समांत-आने, पदांत-के लिये
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जिन्दगी प्यारी मिली है मुस्कुराने के लिये ।
डाल पर बुलबुल सरीखी चहचहाने के लिये ।।1
०
क्या मिलेगा सोच तुझको दर्द की मत बात कर ।
दर्द होता है नहीं सबको बताने के लिये ।।2
०
पीर तो सहनी पड़ेगी उफ न कर मत आह भर ।
भोर आतुर है उजाला संग लाने के लिये ।।3
०
खुद कभी तो आइने में देख तो ले झाँक कर ।
आइना होता जरूरी सच दिखाने के लिये ।।4
०
कारवाँ करता प्रतीक्षा तू कदम अपने बढ़ा़ ।
लोग कुछ उत्सुक यहाँ हैं साथ जाने के लिये ।।5
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पनघटों की खिलखिलाहट खो गयी जाने कहाँ ।
खो दिया क्या सोच तो आराम पाने के लिये ।।6
०
‘ज्योति’ जलना धर्म तेरा राह को दे जगमगा ।
दीप को जलना अँधेरों को मिटाने के लिये ।।7
०
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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