गीतिका
ढोंग कपट को पूज्य बनाते ,मैंने अनुचर देखे हैं।
बिना किए विषपान बने जो, ऐसे शंकर देखे हैं।।1
निद्रा से साधन का नाता,जो कहता वह झूठा है,
सलवट वाले रंग- बिरंगी ,सुंदर बिस्तर देखे हैं।।2
हुआ बावला मन का पंछी,ज्वार उठाए कामुकता ,
देहयष्टि से जब- जब लिपटे, छोटे अंबर देखे हैं।।3
साहस धैर्य शौर्य की पूँजी,सब संभव कर देती है,
शिला खंड को तोड़ सदा ही,बनते निर्झर देखे हैं।।4
लज्जित होती है मानवता,खून टपकता है जिनसे,
नित्य सुबह अखबारों में कुछ, ऐसे अक्षर देखे हैं।।5
बोलें देखें सुनें सभी कुछ ,बैठे हैं चुप्पी साधे,
नई तरह के गाँधी जी के ,मैंने बंदर देखे हैं।।6
मत सोचो मधुमासों में ही,अपना जीवन बीता है,
मैंने भी तूफान सहे हैं ,लाखों पतझर देखें हैं।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय