** गीतिका **
हे सूर्य, क्यों अपनी उष्णता बढ़ा रहे हो।
धीरे-धीरे अपना उग्र रूप दिखा रहे हो।
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माना की घटना-बढ़ना तुम्हारी प्रवृत्ति है,
जन-जीवन को इतना क्यों सता रहे हो।
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सूख रहे हैं नदी-नाले और ताल-तलैया,
भीषण गर्मी से धरा को क्यों तपा रहे हो।
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पेड़-पौधे, पशु-पक्षी भी गर्मी से बेहाल हैं,
लू के थपेड़ों से क्यों इन्हें झुलसा रहे हो।
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मानव कर रहे मनमानी प्रकृति के साथ,
सजा देकर तुम शायद यही बता रहे हो।
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कहे देव,सच पूनम चेत जाए अब मानव,
रौद्र रूप दिखाकर देव,यही जता रहे हो।
@पूनम झा। कोटा, राजस्थान