** गीतिका **
भवन सुंदर लगता दिखने में ।
अच्छा लगता उसमें रहने में ।
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हमारी पूरी उम्र लग जाती है,
एक मकान को घर बनने में ।
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हर खुशी दफन कर देते हैं,
अपनो को ही खुश करने में ।
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जीवन कट जाता इसमें ही,
काँटे चुभते रहते चलने में ।
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बनाते गृह,भवन फिर भी ये
रह जाता आवास कहने में ।
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अंत में समझाते रहते स्वयं को,
क्या पाया क्या खोया देखने में ।
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विमुख कैसे हो इससे ‘पूनम’
आती यही है जिंदगी सुनने में ।
@ पूनम झा
कोटा, राजस्थान