*** गीतिका ***
उपवन में पुष्प खिले-खिले, सब महकने के लिये ।
गगन में घुमड़ते बादल, अब बरसने के लिये।
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मन को भी महका मानव, उमड़ो बादल बनकर
मानव हो मानवता रख , साथ रहने के लिये।
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अहंकार से पतन होय, नमन कर बड़ों को तुम
आशीष ले तुम बड़ों का, सफल बनने के लिये।
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क्षुद्र कहाता वो मानव, जो धोखा देता है,
भरोसेमंद बन तुम तो, दोस्त कहने के लिये।
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मन बाग-बाग बन जाये,सुमन सा खिले मुस्कान
जरूरत है इसकी ‘पूनम’,जगत चलने के लिये।
@पूनम झा।कोटा,राजस्थान 29-1-17
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