गीतिका
ज़िंदगी को प्यार पहला मानकर अपना समझ
चाहकर पाई नहीं हर चीज़ को सपना समझ
फल नहीं मिलता बराबर कोशिशों का हरसमय
एक रोटी के लिए दिन रात है खपना समझ
नित उधड़ती है मियानी, ज़िंदगी की दौड में
नित्य है इसको तुरपना, हाथ से सिलना समझ
लोभ-लालच वासना पथ भ्रष्ट करती है बहुत
जो हुआ हर पाप अपना, धर्म से ढकना समझ
ज़िंदगी बचपन जवानी, फिर बुढ़ापे तक सफ़र
अंततः संवेदना सन्देश है छपना समझ
_____________________________✍️अश्वनी