गीतिका
गीत निजता के तनिक मुझको भी रचने दीजिए।
मूर्ति सपनों की अधूरी जो, वो गढ़ने दीजिए।।
ठेल कर आगे निकलना,आ ही जाएगा मुझे,
भीड़ का हिस्सा मुझे इक बार बनने दीजिए।
नाप लेंगे हम स्वयं,गहरी भला कितनी नदी,
पाँव लहरों पर ज़रा इक बार पड़ने दीजिए।।
टूट कर, गिर कर सँभलना, सीख ही जाएंगे हम,
पग कंटीली राह पर, हमको भी धरने दीजिए।
आप भी आँखों को अपनी, आएंगे मलते नज़र,
खौफ़ के तिनके ज़रा इक बार उड़ने दीजिए।।
हल मुझे हैरानियों के, मिल ही जाएंगे “लहर”,
बर्फ शिकवों की जमी जो, वो पिघलने दीजिए।
रश्मि ‘लहर’