गीतिका
गीतिका
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धीरे धीरे, कदम बढ़ाते जाएं।
हारे जीतें, नयन मिलाते जाएं।
माली ने ज्यों, कण कण को सींचा है।
प्यारे प्यारे, कमल खिलाते जाएं।
आंखों में हैं, प्रिय सपने प्यारे से।
मुस्कानों से, अधर सजाते जाएं।
पा लेना है, अब अपने लक्ष्यों को।
तूफानों में, ध्वज फहराते जाएं।
ऊषा के हैं, क्षण निखरे सिंदूरी।
मेघों में से, छनकर आते जाएं।
वर्षा की है, प्रिय ऋतु आई देखो।
काले मेघा, हरपल छाते जाएं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य