गीतिका
चाहे जितना वैभव पा लो जीते जी,
रुपयों का अंबार लगा लो जीते जी।
काला चिट्ठा सबके सम्मुख आता है,
कसमें झूठी जितनी खा लो जीते जी।
किसको फुर्सत है हाथों से काम करे,
पुर्ज़ों के इंसान बना लो जीते जी ।
अंतिम क्षण में जीत प्रेम की होती है,
नफरत चाहे जितनी पालो जीते जी।
दुख तो जीवन में आता-जाता रहता,
होंठों पर मुस्कान बसा लो जीते जी।
जाने कब जीवन नैया धोखा दे दे,
मनमर्जी का गाना गा लो जीते जी।
बच्चों के जीवन में खुशियाँ दे जाओ,
गुल्लक में कुछ पैसे डालो जीते जी ।
जगदीश शर्मा सहज