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8 Jun 2023 · 1 min read

गीतिका

गीतिका-22
आधार छंद वास्रग्विणी
०००
सोच
०००
त्याग हठ बात कर, तू जरा प्यार से ।
प्रश्न सुलझें कभी , भी न तलवार से ।।१

मत जहर यूँ उगल, विषधरों की तरह ।
जल उठेगा चमन , देख फुंकार से ।।२

शब्द ही हैं बहुत , मारने के लिये ।
घाव होते बड़े , शब्द की मार से ।।३

गुड़ सरीखा न बन , नीम सा भी नहीं ।
सोच फिर कर पुनः , बात अधिकार से ।।४

कब समंदर बुझा, पा सका प्यास को ।
प्यास बुझती सदा , शैलजा धार से ।।५

देख तो फागुनी ,रंग बिखरे पड़े ।
है मजा जीत से, या बता हार से ।।६

जब उजाला न दे, सोच आनंद तो ।
‘ज्योति’ मिलता वही, घोर अँधियार से ।।
०००
महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
***

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