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7 Jun 2023 · 1 min read

गीतिका

गीतिका -21
०००००
आदमी
०००००
पिसते’ पिसते बहुत बौना हो गया है आदमी ।
मातमी ख़त का सा’ कौना हो गया है आदमी ।।

आसमाँ पर इन्द्रधनुषों सी तनी है कामना।
देखिये कितना सलौना हो गया है आदमी ।।

रेज़गारी से भुने व्यवहार हैं इन्सान के ।
घट घटाकर ऩोट पौना हो गया है आदमी ।।

फर्श की किस्मत में’ आये मखमली कालीन हैं ।
चीथड़ा कोई बिछौना हो गया है आदमी ।।

पढ़ रहे भूगोल में हम सारी’ दुनियाँ गोल है ।
पर मुझे लगता तिकौना हो गया है आदमी ।।

‘ ज्योति ‘ बींधे मोतियों के हार पोते हम रहे ।
बे बिंधे मोती पिरोना हो गया है आदमी ।।
********

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