गीतिका
गीतिका-17
०००००
बेटियां
००००
खेलतीं, जूझतीं, जीततीं बेटियाँ।
भारती की करें आरती बेटियाँ ।।
०
भाल ऊंचा किया देश का विश्व में ।
जीतने को पदक खेलती बेटियाँ ।।
०
पंख फैला उडें चीरतीं हैं गगन ।
वर्दियों में सजी घूमतीं बेटियाँ ।।
०
दो कुलों की बढ़ाती सदा शान ये ।
आन को बान को सींचती बेटियाँ ।।
०
ये सुहानी हवा सी चलें जब कभी ।
स्वर्ग के द्वार से खोलती बेटियाँ।।
०
हैं सृजनहार ये पालती-पोषतीं ।
चल रहीं नेह रँग बांटती बेटियाँ ।।
०
सह रही हैं मगर आज अपमान भी ।
कोख में साँस को तोड़ती बेटियाँ ।
०००
-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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