गीतिका
गीतिका….-12
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करवा चौथ
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आई करवा चौथ सखी सब, मिल त्यौहार मनायें ।
कर सोलह शृंगार सजन को , अपने आज रिझायें ।।
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नयनों में काजल की रेखा, माथे चिलके बिंदिया ।
मेंहदी महके हाथ महावर , से चल पाँव रचायें ।।
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माँग भरें सिंदूर गूँधकर , वेणी टाँकें गजरा ।
पहन मुद्रिका बाहों में ,चूड़ी कंगन खनकायें ।।
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जड़े सितारों वाली चूनर , लँहगा गोटे वाला ।
कमर कौंधनी पहन सखी हम, मंद-मंद मुसकायें ।।
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कानों में मकराकृति कुण्डल, दमके उर में हरवा ,
बिछुआ पायल पहनें चल फिर ,करवे सभी सजायें ।।
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गिरिजा माँ ने तप के बल पर , शिवशंकर पति पाये ।
अपने तप से हम भी अपने , पावन वचन निभायें ।।
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प्रेम गंध से महकायें हम , घर का कौना-कौना ।
देखें उगता शशि व्रत खोलें, नेह सजन का पायें ।।
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सात जन्म का बंधन प्यारा , ईश कृपा से पाया ।
वंदन नमन करें उनका हम ,गीत प्यार के गायें ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’
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