गीतिका….. सहमी है बेटियां
******** सहमी है बेटियां ******
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अब हो रही शिकार, दरिंदों से बेटियां
ना घर में सुरक्षित हैं, ना ही बाहर बेटियां
कैसी हवा चली है, जलन लेके अब की बार
मासूम अबोध भी, हुई शिकार बेटियां
कानून की धारा का, इंतजार कब तलक
बधिया बना दो जिसने भी, लूटी है बेटियां
दो ..चार बहसीयों को, सजा ऐसी दीजिए
जो कांप उठे मौत, हंसे सहमी बेटियां
आजाद वतन में कहां, आजाद है बेटी
बहसी निगाहों से डरी, सहमी बेटियां
आओ हम ही उठाएं, हथियार ए.. “सागर*”
जो जी सकें बेटों की तरहा, प्यारी सी बेटियां
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मूल रचनाकार ….. डॉ. नरेश “सागर”
——–इंटरनेशनल बेस्टीज साहित्य अवार्ड 2019 से सम्मानित