गीतिका “बचाने कौन आएगा”
03/03/2023
लगे दहलीज की ठोकर , उठाने कौन आएगा।
खफ़ा खुद से ही जो रहता , मनाने कौन आएगा।
उदित होता है प्राची में , दिवाकर रोज ही आकर।
हो गई है सुबह तुमको , बताने कौन आएगा।
हुआ जगमग गगन सारा , चमकती चाँद की आभा।
धरा ने ओढ़ ली चूनर , सजाने कौन आएगा।
जो उलझन में ही है उलझा,देखकर यार का चेहरा।
छोड़कर अक्स खुद का ही , सताने कौन आएगा।
पाँव में हैं बंधी बेड़ी , डूबता जा रहा दरिया।
खुली पलकों के जो सोया , जगाने कौन आएगा।
मुकम्मल जो नहीं रहता , कभी अपने इरादों पर।
करे इनकार मजलिस से , बुलाने कौन आएगा।
बेखबर है जमाने से , ‘रुद्र’ उसको कहें अब क्या।
जला घर आग में खुद का , बचाने कौन आएगा।
द्वारा :🖋️🖋️
लक्ष्मीकान्त शर्मा ‘रुद्र’