गीतिका (गुरू चेला)
गुरु चेला संवाद
गीतिका
शब्द व्यर्थ के जोड़े चेला ।
अभिधा से सिर फोड़े चेला ।
उनके चमचे गुण्डे लुच्चे ,
तू क्यों मूँछ मरोड़े चेला ।
छंद छिछोरों की छानी में,
खाए हँसी के कोड़े चेला ।
पद वालों का पाद इत्र है,
तू मत नाक सकोड़े चेला ।।
वही सफल है इस मयफिल में,
जो भी ऊँची छोड़े चेला ।
मस्काबाजी मेडल पाए ,
मेहनत खून निचोड़े चेला
अब उनको धो देगी जनता,
बचे बहुत दिन थोड़े चेला
फेक फेक झाँसे के पाँसे ,
खूब पटाखे फोड़े चेला ।
अब कुर्सी पर खाना मुश्किल,
पद के गरम मगौड़े चेला ।
कविता मानें उसे गुरू जी,
जो युग धारा मोड़े चेला ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर