गीतिका।मिलन का आ गया अपने पुनः त्योहार आँगन मे ।
===================गीतिका===================
मिलन का आ गया अपने पुनः त्योहार आँगन मे ।
मिटा नफ़रत गले मिलकर करेंगें प्यार आँगन मे ।
बड़ा प्यारा निराला है हमारा पर्व होली का ।
अमीरी का गरीबी का न हो व्यवहार आँगन मे ।
न कुंठित मन मगन उर मे कहीं दुर्भावना पनपे ।
भरेंगें रंग खुशियों का सभी घर द्वार आँगन मे ।
निराशा तम के बंधन सँग बुराई छोड़ तुम आना ।
बसायेंगे मुहब्बत का नया संसार आँगन मे ।
न दुख आये न चिंता हो न भूखा हो न प्यासा हो ।
न हो शंशय न भावों का करें व्यापार आँगन मे ।
न काले का न गोरे का सभी वर्णो के संगम का ।
मिलन सबरंग है होली यक़ीनन यार आँगन मे ।
खिले मुख हर्ष से ‘रकमिश’ बढ़ाये नेह पावनता ।
अबीरों की ग़ुलालों की सजी बौछार आँगन मे ।
रकमिश सुल्तानपुरी