गीतिका।कपट हीन निःस्वार्थ हो जीवन का आधार ।
क़ुदरत के अनुरूप ही आप करें व्यवहार ।
कपट हीन निःस्वार्थ हो जीवन का आधार ।
सुख की छणिकाएँ ज़रा दुःख के रूप अनेक ।
घट बढ़ सकता भाग्य पर कर्मो के अनुसार ।
हृदय को विस्तार दे सबसे रखिये नेह ।
प्राणिमात्र पे कर दया यथाशक्ति उपकार ।
लोभ क्षोभ मद मोह का साथ दीजिये छोड़ ।
प्रेम सदा उपजाइये सपने हों साकार ।
नेह कुसुम के त्याग से सभी करें सहयोग ।
गूँथ रही है सभ्यता मानवता का हार ।
ईश्वर मे अनुरक्ति रख भक्ति सधा विस्वास ।
कृपा मात्र की कामना से होगा उद्धार ।
सबके हित मे देखिये रकमिश निज प्रतिबिम्ब ।
देश समर्पित नेह सँग अतिथि सखा परिवार ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी