गीता श्लोक
देहिनोअस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवन जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥
श्री० गीता, अ०-२, श्लोक- १३
॥काव्यानुवाद॥
रे पार्थ, जब ये जीवात्मा
देह धारण करे,
बाल, युवा, वृद्ध की
अवस्था का वो वरण करे।
शरीर मृत हो जाता है,
जीव निकल जाता है।
मोक्ष गर न मिले,
नया देह पा जाता है।
फिर रे धनंजय!
है ये शोक क्यूँ?
इस क्षणभंगुर देह के लिए,
धीर नर को मोह क्यूँ!
छोड़ दे मोह पार्थ!
तू इस शरीर का,
शोभन नहीं है ये,
तुझ जैसे धीर का।
कुछ नहीं ये देह,
दो दिन की कहानी है;
खाक हो जाएगी एक दिन,
बुलबुला पानी है।
॥सोनू हंस॥