गीता बोध
जगद्गुरु भगवानश्री कृष्ण से,
शिष्य अर्जुन सुनता गीता है।
मानव प्रतिनिधि अर्जुन संग,
संवाद वाणी ही श्री गीता है।
शब्द-अक्षर के ही नहीं श्लोक,
दिव्य ऊर्जाओं के स्रोत है।
सूत्ररूप में है समाहित,
जीवंत धारण करने योग्य है।
कर्म,ज्ञान और भक्ति रूपी,
त्रिवेणी संगम भगवद्गीता है।
नित नूतन ज्ञान,प्रकाश, प्रेरणा,
दिखलाती सबको गीता है।
सब वेदों का है सार निहित,
संवाद रूप सुपनिषद गीता है।
प्रभू प्राप्ति हित योग साधना,
ब्रह्मविद्या नाम ही गीता है।
जीवन का सर्वोत्कृष्ट पल वहीं,
पठन,मनन,चिंतन ही गीता है।
कर्मयोग का ज्ञान कराती,
शुभ व निष्काम कर्म ही गीता है।
भगवच्चेतना को धारण करना,
भक्तियोग से गीता है।
भगवद्तत्व को जान सकें तो,
ज्ञानयोग से गीता है।
धर्मक्षेत्र-कुरूक्षेत्र अति पावन,
जीवन -दर्शन हित गायी गीता है।
देह है नश्वर आत्मा शाश्वत,
संदेश ,बोध कराती गीता है।
(राजेश कौरव “सुमित्र”)