गीता छंद
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!! श्रीं !!
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गीता छंद – मापनीयुक्त मात्रिक
2212 2212 2212 221
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मन रामजी का नाम रट हैं राम तारनहार ।
भज राम सीता राम सिय इस नाम को कर प्यार ।।
पापी सभी तारें हरी वे ही करें उद्धार ।
तू थाम ले इस नाम को नैया लगेगी पार ।।
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बिखरे पड़े देखो डगर में शूल केवल शूल ।
कलियाँ सिसकतीं डालपर खिलते नहीं हैं फूल ।।
कोमल उगी हैं पत्तियाँ जिन पर जमीं है धूल ।
मुस्का रहा पतझर यहाँ झूला रहा है झूल ।।
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कुछ यत्न ऐसे हों यहाँ फिर से बहारें आँय ।
बिखरे नहीं हों शूल डालों पर सुमन इठलाँय ।।
कलियाँ खिली झूमें मगन मन मोर-सी इतराँय ।
आनंद की मन-आँगना फिर से घटा घिर जाँय ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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