गिला शिक़वा
गिला-शिक़वा (सजल)
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***2212 – 2212***
कोई गिला शिक़वा नहीं,
कोई रहा मितवा नहीं।
पर क्यों न मिल वो सके,
हम से कभी रुसवां नहीं।
रुक सा गया है कारवां,
चलती पवन पुरवा नहीं।
रोते कभी तो हैं हंसते,
दोनों कहीं जुड़वां नहीं।
वैसा न मनसीरत रहा,
उनको रही परवा नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)