गिलहरी(9)
9
उछल कूद कर खेल दिखाती भाती हमें गिलहरी
टुकुर टुकुर सी ताके ऐसे लगती खुद की प्रहरी
कितनी छोटी सी है लेकिन हाथ न अपने आती
नचा नचा कर मुँह अपना ही कुतुर कुतुर कर खाती
फूलों की बेलों पर चढ़ती रहती और उतरती
कितनी फुर्तीली है पतली दुबली बड़ी छरहरी
उछल कूद कर खेल दिखाती भाती हमें गिलहरी
दिखलाया प्रभु को भी अपना प्रेम समर्पण आकर
बिछी रेत में पूँछ डुबोकर भरना चाहा सागर
कहते हैं आशीष प्रभु ने दिया इसे खुश होकर
तन पर तीन सफेद बनी हैं रेखाएं जो गहरी
उछल कूद कर खेल दिखाती भाती हमें गिलहरी
06-02-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद