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24 Sep 2020 · 1 min read

गिर रहे किरदार कैसा दौर है

गिर रहे किरदार कैसा दौर है
जो करे धोखाधड़ी वो चोर है

चोर भागा चोर भागा शोर है
चोर बोला है कहाँ पर चोर है

वो समझता था बड़ा वो चोर है
क्या पता था चोर पर भी मोर है

तंज भी करता है तेवर भी जुदा
मिल गई दौलत तो कैसा तौर है

दोस्त तो सारे मगर होते यहाँ
वक़्ते-मुश्किल साथ दे वो और है

हर तरफ़ बीमारियाँ महंगाइयाँ
मुफ़लिसी का हर तरफ़ ही ज़ोर है

रोशनी भी इल्म की पहुँची नहीं
वाँ अँधेरा ख़ूब ही घनघोर है

वक़्त के आगे सदा मजबूर वो
आदमी कितना अभी कमज़ोर है

याद रखना चाहिये सबको सदा
आख़िरी मंज़िल सदा ही गोर है

मुझको लगता है बनेगी बात अब
इक इशारा भी हुआ इस ओर है

ग़ौर से ‘आनन्द’ सुन ले सच यही
रब के हाथों में सभी की डोर है

शब्दार्थ:- तौर = ढ़ंग, गोर = क़ब्र, ग़ौर = ध्यान

डॉ आनन्द किशोर

3 Likes · 3 Comments · 231 Views
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