गिरगिट
एक गिरगिट अचानक
रूप बदलने लगा
नये-नये रंग में
पल-पल ढलने लगा ।
उसको यों करता देख
एक गिरगिट दूसरे से बोला
यार !यह अकारण
क्यों बदल रहा है चोला ?
यह सुन गिरगिट ने
अपने मित्र को बताया
उसे समझाया
कहा-यार यह अभी-अभी
आदमी की बस्ती से आया है
इसलिए बौराया है ।
गिरगिट की बात सुन
दूसरा बोला-
यार!ऐसे में तो यह
मुफ्त में मारा जाएगा ।
क्या यह आदमी की तरह
कभी रंग बदल पाएगा?
आदमी ने तो
गिरगिट की फितरत पा ली है
क्या गिरगिट
आदमी की फितरत ले पाएगा ?
दोनों ने सोचा
चलो उसे समझाते हैं
सही राह पर लाते हैं ।
वे उसके पास गए
उन्होंने उसे समझाया-
अरे! तू है बहुत भोला
क्यों बदलता है
बार-बार चोला
आरे! तू गिरगिट है, गिरगिट ही रह
खुद को आदमी मत कह
जो आदमी के चक्कर में जाएगा
खुद गिरगिट भी नहीं रह पाएगा ?:
यह सुन
रंग बदलता हुआ गिरगिट बोला-
अभी-अभी मैं जहाँ से आया हूँ
वहाँ आदमी का व्यवहार देख घबराया हूँ ।
कुदरत ने जो
रंग बदलने की कला हमें दी है
आदमी हमसे भी आगे निकल रहा है
यही मुझे खल रहा है
इसलिए मैं
उससें आगे निकलने की कोशिश कर रहा हूँ
और बार-बार रंग बदल रहा हूँ ।
बार-बार रंग बदल रहा हूँ ।
अशोक सोनी