गाली
गाली (सरसी छंद)
गाली दे कर खुश होता है,बने बहादुर वीर।
जलता हरदम विद्वानों से,कायर दूषित चीर।
बुद्धिहीन कलुषित गँवार है,अंदर-बाहर गंध।
जिह्वा पर गन्दगी विराजे,आँखों से है अंध।
मरियल-सड़ियल कुक्कुर जैसा,बदबूदार स्वभाव।
अच्छे लोगों से ईर्ष्या रख,देना चाहे घाव।
स्वच्छ मनुज से जलता रहता,बोलेगा अपशब्द।
अनपढ़-मूर्ख-निरक्षर- पापी,नहीं पास मृदु शब्द।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।