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2 Aug 2024 · 1 min read

किरणों की मन्नतें ‘

अंधेरे के चाँद का
एक दिन आता है
पूर्णिमा की चांदनी में
देखा सजता संवरता ,,,,

धूप में भी जिसे
पाला हो अंधेरे ने
वो किरणों की मन्नतें
कभी नहीं करता ,,,,

खोज लिया हो जिसने
मन समंदर का खुदा
तूफ़ानों सुनामियों से
वो कहाँ डरता ,,,,

जो जीवन में जिन्दगी
खो कर बैठा हो
मौत आये तब भी
वो कहाँ मरता ,,,,

जिनका मन रोशन हो
किसी की दुआओं से
ग्रहण का सूरज भी
उन्हें कहाँ अखरता ,,,

शान से खड़े जो
फर्जी खुदा बन कर
मस्जिद मंदिरों से बड़ा
उनका घर था ,,,

भीतर ही भीतर
मिटा रहा था हस्ती
एक रोज जब प्यार
बन गया ज़हर था ,,,

नफरतें जल कर
राख बन चुकी थीं
लेकिन विश्वास पर
अब टूटा कहर था ,,,,

– क्षमा उर्मिला

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