गालिब
कूटनीति कहे या कहे फूटनीति
कल भी थी आज भी है
गालिब भी है काबिल भी
खुद को जिया ओरों को जीवन दिया
प्रेम पथ पर उतरे खरा,
हर बज़्म व्यवाहरिक है.
मन के पार जो गया,
रीति तोडी छोडी नहीं परम्परा,
हर ठहरे पानी में पत्थर मारते चला.
एक नई ऊँचाई दुनिया को दे चला
जुडकर भी टूटकर भी पैदा होती ऊर्जा,
नहीं पाईभर खर्चा.