गाम हमरा हमर बड्ड इयाद आबै लगल(कविता)
गाम हमरा हमर बड्ड इयाद आबै लगल(कविता)
हम रहू चाहे न रहू
हिय मे मात्रभूमि सगरे बसै
मा बाबू सिनेह माटि गमक कतहू नै भैटय
मन होययै छोडि सब बसि जैतौ अतैय
गाम हमरा हमर बड्ड इयाद आबै लगल
मा आंचरि बिछौनै हेथिन,
दुलरूआ आबि जाउ अतैय
बाबू किछू नहि कहता देखि तोरे
गोदी राखब लोरी सुनाब,कहैय लाल ताकू तोरे
काका कहत अंग मिथिला संस्कार नै भैटय कतहू
मन होययै छोडि सब बसि जैतौ अतैय
गाम हमरा हमर बड्ड इयाद आबै लगल
जनम जनम धरि नव जयदेव गाम मे रहूँ
पिपल ओतऽ गाछ खेलू राधा रानी के ताक
नैन खोलू तखन जौ गोसावनि सूनू जखन
समझ टुटल भरम आब नहि जायब शहर
दूटा टका कमायब अतय रहि गाम
गाम हमरा हमर बड्ड इयाद आबै लगल
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य