गाओ शुभ मंगल गीत
रंग,अबीर,गुलाल उड़ाकर
गाओ शुभ मंगल गीत
मन के कलुष और बैर भाव
मिटा गाढ़ी कर लो प्रीत
शुभ मुहूर्त की चार घड़ी
यूं ही व्यर्थ न जाए बीत
गाओ शुभ मंगल गीत,,,
रंगों की तासीर अजब कुछ
पुरखों को उनकी रही समझ
जीवन में उल्लास सृजन को
संबंधों में नव अंकुरण को
गढ़ दी सबने रंग पर्व की रीत
गाओ शुभ मंगल गीत,,,
छोटे और बड़े का भेद भुला
सब पर रंग और गुलाल उड़ा
खुल जाएं मन की सब गांठें
ऐसे झूमकर रंगोत्सव तू मना
ताकि और सबल हो संबंधों की भीत
गाओ शुभ मंगल गीत,,,
जीवन बस संबंधों का ही खेला
जो यह न समझा वो रहा अकेला
अपने मन में उत्साह भरण को
अपनी काया में ऊर्जा संचरण को
निभाओ सब पुरखों की रीत
गाओ शुभ मंगल गीत…