गांव
ए सड़क अब तू गांव आई है,
जब सारा गांव शहर चला गया,
शिकायत थी टूटी सड़क से,
वो भी अच्छी लगती थी,
दिलों में तो मिठास थी,
भाग के गांव आ जाना,
टूटी हवेली भी किसी महल से कम न थी,
बचपन के दोस्त,
अफसर सर समझ के मिलते थे,
हर किसी का हाल जान लेता था बातों में,
जुट जाता हर मुश्किल का हाल होता था मेरे पास
किसी का चश्मा किसी की टॉर्च,
सबके लिए कुछ ना कुछ होता था मेरे पास,
कुछ ना भी मिला तो नोटों की वह बरसात कर,
सोचता मैं हूं मालामाल,
गांव से क्या पाया क्या खाोया,
जब तक यह सोच पाता
ना वो गांव रहा ना वह लोग।
ए सड़क अब तो काम आई है जब सारा गांव शहर चला गया।