गांव का दर्द
जल्दी जल्दी जात रहली,
पैदल अपने गांव।
गर्मी के मौसम रहल,
छाला पडल पाँव।
कहि नाही मिलल हमरा,
अपना निमिया के छाँव।
पानी बिना सुखल मिलल,
सब पोखरा आपन गांव ।
मारे खिसियाइल मने मन
आ गइली अपना गांव ।
देख भौजाई हँसे लगली,
हमरो हाव भाव।
कसके गुस्सा में लज्जित कइली
हम देखली आव न ताव ।
खूबे हमरा उपर भौजी,
दिहली भैया के बहकाव।
तब सोचनी की काहे अइसन
अइली अपना गांव ।
अनिल “आदर्श”