गांव की सैर
कच्ची पक्की सड़कों से चले,
पहुंच गए हम जंगल के गांव।
चहुंओर फैली थी हरियाली,
आम नीम पीपल की थी छांव।।
खेत ककड़ी से थे खूब भरे,
आम के पेड़ पर लदे थे आम।
पेड़ो के नीचे बैठे थे कुछ बंदर ,
कितनी सुहावनी थी यह शाम।।
घरों पर चढ़ी थी सुंदर खपरेल,
खाली खाली थी देखो दालान।
गांव के एक तरफ थी पहाड़ी,
नीला नीला फैला था आसमान।।
थोड़ा समय निकाल कर घूम लेते,
काम में भी ढूंढ लेते हम आनन्द।
व्यस्त शहरी जीवन में हम सब घिरे,
फिर भी चुरा लेते है समय चंद।।
——- जेपीएल