गांव की वह तंग गलियां
है गांव मेरा छोटा थोड़ा
है तंग उसकी गलियां
उन तंग गलियों में ही है एक प्यारा सा घर मेरा
वह मेरा मायका कहलाता है
उन तंग गलियों से है यादें जुड़ी
जहां प्रेम की हवा है बहती
जहां आज भी मिट्टी की खुशबू मुझे खींच ले जाती है
जो आज भी उन तंग गलियों के दरवाजे सदा खुले ही नजर आते हैं
जहां खुशियां भी साथ मनाई जाती है
हर तकलीफ को बांटी जाती है
छोटी तंग गलियों में आज भी चहल-पहल नजर आती है
पर इन बड़े शहरों के घर है बहुत ही बड़े पर दिल सब के छोटे हैं
घर के दरवाजे सदा बंद है रहते किसी की तकलीफ का एहसास ना समझते हैं
हवाओं में पैसों की खुशबू की बहती है सदा
तो किसी के दिल का एहसास होगा कहा
शहरों की सड़कें चौड़ी है बहुत पर वह सड़कें भी सूनी नजर आती है
कहां मिलता है ऐसा एहसास यहां शहरों में जरा जो गांव की तंग गलियों में आज भी नजर आता है
*** नीतू गुप्ता