गांव की मिट्टी मे शोधी महक है।
गांव की शोधी महक है
पेड के है छाव चिडियो की चहक है
संस्कारो से अभिसिंचित लोग है
कार्य मे मिश्रित यहां पर योग है
सादगी है मूलता है न बनावट
मिल रहे है प्रेम से न है अदावत
बोलियो मे प्रेम है मिठास है
गांव की मिट्टी जरा कुछ खास है
प्रकृति है शुद्ध हवा साफ है
कम है कीमत बस्तु की दर हाफ है
मिलकर रहते कुटुम इकसाथ है
मेहनत होती है यहां दिन रात है
कदम दर कदम बडो की सलाह
काश मिल जाता पुराना गांव नीम की छांह
शोधी महक मिट्टी की गांव मे बुलाती है
याद आती गांव की आंखे भर आती है
समाज है मिलकर मदद करता यहां
ढूंढता गांव सा मिलता कहां है
आम पीपल नीम की घनी छांव मे
खेलते थे दिन दिन कई जब गांव मे
टूटे खिलौने से ही मिल जाती खुशी थी
आज वैसी खुशी मिलती नही है
धऩ तो मिलजाता कृत्रिमता नगर मे
जहर है प्रदूषण बचकर रहो शहर मे
विन्ध्यप्रकाश मिश्र