“गांव की मिट्टी और पगडंडी”
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/262129c05d779cb8f5c4467968a9ff08_ba0f8cd69c3d175df5dababa2c55fbd3_600.jpg)
मिट्टी की सोंधी महक याद आई है,
टेढ़े मेढ़े पगडंडी छोड़कर मैं आयी हूँ,
पलते, बढते और लिखते पढ़ते,
हर जगह गए चलते फिरते।
कितना प्यारा मेरा गांव,
कितना न्यारा अपना गांव।
गंगा जमुना ऐसे मिलती,
जैसे बिछुड़ी बहने मिलती।
तप,यज्ञ,ज्ञान का गंगा तट,
कुटी तीर और गंगा जमुना का तट।
गॉव की चूल्हे की रोटी मन में रहती है,
रोटी की सोंधी महक मन मे बसती है।
गांव में एक मीठी छांव थी,
नीम की एक शीतल छाँव थी।
गांव में एक मीठी शाम रहती थी,
रोज रात में माँ की एक कहानी रहती थी।
छोटे छोटे नैनों में एक सपना रहता था,
पास में आकाश रहता था और चांद दिखता रहता था।
कितना प्यार मेरा गांव,
जरा न थकते थे मेरे पांव।
भीनीभीनी हवा आंगन में आती थी,
मैदानो में चरती गायें इतराती इठलाती थी।
रोज सवेरे चिड़ियों की चहक मीठे गीत सुनाती थी,
बड़े प्यार से माँ उठने की बोल लगाती थीं।
गांव का वो मटके का पानी पीते थे,
न कोई रोग सताए ना बीमार पड़ते थे।
गांव की मिट्टी जीने का आगाज है,
गांव की मिट्टी जीवन का अंजाम है।
गांव की मिट्टी टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी ,
आज भी याद आती है।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️