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20 Jul 2020 · 2 min read

रोटी और चावल का रिश्ता

मेरे एक ममेरे भाई जब पहली बार कोलकाता गए तो भाईसाहब ने उनकी नौकरी एक ट्रांसपोर्ट कंपनी मे लगवा दी। रहने का इंतजाम गांव के व्यापारी की गद्दी मे कर दिया और खाने की व्यवस्था के लिए एक मारवाड़ी बासा भी ठीक कर दिया।

जिंदगी ठीक ठाक चल निकली।

एक दिन इस बासे में उनकी मुलाकात हमारे एक और चचेरे भाईसाहब से हुई जो कभी कभार वहां खाना खाने आते थे।

उस समय एक मासिक तय की गई राशि के भुगतान पर वहां दो वक्त पेट भर कर खाना खिलाया जाता था। अधिकतर प्रवासी लोग जो परिवार से दूर यहाँ काम करते थे इन्ही बासों पर निर्भर थे।

ममेरे भाई को रोटी से पहले दाल चावल खाता देख कर वो थोड़ा चकित हुए और बोले पहले पेट भर कर रोटियाँ खाओ फिर चावल खाया करो।

फिर उन्होंने अपने विनोदी ज्ञान द्वारा ये कहकर समझया। देखो रोटियाँ ईंटों की तरह है और चावल सीमेंट व बजरी से बने मसाले की तरह , जो ईंटों के बीच की खाली जगह को जोड़ने और भरने के काम आयेंगे।
ममेरा भाई उनके इस तरह से भोजन करने की शोध पर मुस्कुरा उठा और उनकी हाँ में हाँ मिला दी।

बचपन में, मुझे जब ये बात पता लगी तो मैं भी इस मज़ाकिया शोध को आगे बढ़ाता हुआ ये सोचने लगा कि चचेरे भाईसाहब ने तो अब तक अपने पेट में इन तथाकथित ईंटों के न जाने कितने मकान बना लिए होंगें और कई सब्जियां तो वहाँ अपना घर बसाकर ख़ुशी से रह भी रही होंगी।

अब मुझे उनके पेट के पास खुली बटन का राज समझ में आने लगा था।

कुछ जगहों पर शायद इस सोच से निपटने के लिए खाने में
परोसी जाने वाली रोटियों की संख्या निर्धारित की जाने लगी।

Language: Hindi
5 Likes · 6 Comments · 568 Views
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