Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Aug 2020 · 2 min read

बेटी के घर का पानी

पुरानी मान्यता थी कि एक बार जिस घर बेटी ब्याह दी , फिर उस घर का पानी भी नहीं पिया जाता था। इसके पीछे का तर्क तो नहीं मालूम, कुछ रहा होगा उस काल खंड में जब ये प्रथा प्रचलित हुई होगी।

फिर यूँ देखने मे आया, कि बेटी के ससुराल जाने पर , आस पड़ोस से खाना बनकर समधी के लिए आता। बस खाना बेटी के घर का बना न हो, ये शर्त पूरी होनी चाहिए थी। कुछ दिन तक ये भी चला, क्योंकि सामाजिक एकता रही, लोग एक दूसरे के काम आते थे, संयुक्त परिवार की परंपरा भी थी।

जब संयुक्त परिवार भी विगठित होने लगे तो परिवार भी दो चार लोगों में सिमट कर रह गए। आस पड़ोस के लोगों से भी वैसी निकटता न रही।

पुरानी पीढ़ी के मन में अब भी कहीं कहीं “वो पानी वाली हिचकिचाहट बरकरार रही”

उसका भी एक रास्ता निकाला गया, खाना वगैरह अब खा सकते थे, उसका मूल्य अदा कर दें, ताकि प्रथा टूटने की ग्लानि से बचा जा सके।

मेरे मौसा जी भी एक बार किसी काम के सिलसिले में बर्दवान गए, एक दो दिन रुकना था।वहीं बेटी का घर भी था, जो अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी। जीजाजी पुलिस विभाग में अफसर थे।

मौसा जी के जाने पर सब खुश हुए। थोड़ी देर बाद चाय आयी, मौसा जी को हिचकते देख, दीदी ने कहा , बाबूजी आप चाय के पैसे दे दीजिएगा। वो राजी हो गए, चाय पीकर उन्होंने दो रुपये थमा दिए।

बाजार में चाय उस वक्त पचास पैसे की मिलती थी।

फिर खाना, दूसरे दिन का नाश्ता , सब होता रहा और हाथों हाथ पैसे का भुगतान भी।

मौसा जी को चाय पीने की आदत थोड़ी ज्यादा थी, । पर ये दो रुपये की चाय अब थोड़ी खटक रही थी कहीं, पहली बार दो रुपये दे चुके थे तो अब कम भी नहीं दे सकते थे।

खैर उन्होंने चाय पी ही ली।

कुछ देर बाद, जब दीदी ने पूछा कि बाबूजी चाय पीयेंगे क्या?

भोले भाले मौसा जी अपनी जुबान मे बोल बैठे” बाई, तू तो चाय प्या कर, मेरा सारा पीसा खोस लेसी”
( बेटी, तुम इस तरह चाय पिलाकर मेरे सारे पैसे छीनने के चक्कर में हो)

ये कहकर दोनों हंस पड़े।

पानी के पैसे भी दिए हो तो मुझे पता नहीं?

या मौसा जी ने ये सोच कर खुद को समझाने की कोशिश की हो कि चाय के ५० पैसे ही दिए और डेढ़ रुपये का तो वो पानी था जो चाय में उन मान्यताओं के कारण घुलने मे आनाकानी कर रहा था।

चीजों की क़ीमतें, मन में बैठी भावनाएँ और अंतर्द्वंद, कुछ न कुछ जोड़ तोड़ में लगा ही रहता है।

चिप्स के पैकेट से निकली हवा की कीमत, आज की नई मान्यतायें तय कर रही हैं।

शरीर के साथ विचारों को भी हवा पानी बदलते रहने की जरूरत है, अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की खातिर।

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 486 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
अलविदा नहीं
अलविदा नहीं
Pratibha Pandey
वक्त गिरवी सा पड़ा है जिंदगी ( नवगीत)
वक्त गिरवी सा पड़ा है जिंदगी ( नवगीत)
Rakmish Sultanpuri
चंद अपनों की दुआओं का असर है ये ....
चंद अपनों की दुआओं का असर है ये ....
shabina. Naaz
"तारीफ़"
Dr. Kishan tandon kranti
नज़र नज़र का फर्क है साहेब...!!
नज़र नज़र का फर्क है साहेब...!!
Vishal babu (vishu)
" नैना हुए रतनार "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
मन की डोर
मन की डोर
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
कवि रमेशराज
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आओ हम सब मिल कर गाएँ ,
आओ हम सब मिल कर गाएँ ,
Lohit Tamta
2777. *पूर्णिका*
2777. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
क्या क्या बताए कितने सितम किए तुमने
क्या क्या बताए कितने सितम किए तुमने
Kumar lalit
*ये बिल्कुल मेरी मां जैसी है*
*ये बिल्कुल मेरी मां जैसी है*
Shashi kala vyas
You call out
You call out
Bidyadhar Mantry
मजदूर
मजदूर
Harish Chandra Pande
सारे नेता कर रहे, आपस में हैं जंग
सारे नेता कर रहे, आपस में हैं जंग
Dr Archana Gupta
जय श्री राम
जय श्री राम
goutam shaw
गंणपति
गंणपति
Anil chobisa
सर्दियों का मौसम - खुशगवार नहीं है
सर्दियों का मौसम - खुशगवार नहीं है
Atul "Krishn"
पढ़ना जरूर
पढ़ना जरूर
पूर्वार्थ
"इस्तिफ़सार" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
जन्म दिवस
जन्म दिवस
Aruna Dogra Sharma
जन्माष्टमी महोत्सव
जन्माष्टमी महोत्सव
Neeraj Agarwal
رام کے نام کی سب کو یہ دہائی دینگے
رام کے نام کی سب کو یہ دہائی دینگے
अरशद रसूल बदायूंनी
Typing mistake
Typing mistake
Otteri Selvakumar
नादान परिंदा
नादान परिंदा
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
माता रानी की भेंट
माता रानी की भेंट
umesh mehra
तिरे रूह को पाने की तश्नगी नहीं है मुझे,
तिरे रूह को पाने की तश्नगी नहीं है मुझे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अवसाद का इलाज़
अवसाद का इलाज़
DR ARUN KUMAR SHASTRI
17 जून 2019 को प्रथम वर्षगांठ पर रिया को हार्दिक बधाई
17 जून 2019 को प्रथम वर्षगांठ पर रिया को हार्दिक बधाई
Ravi Prakash
Loading...