दीपू
गांव के मैदान में क्रिकेट का अभ्यास खत्म होने के बाद, कुछ देर पास के एक पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने का कार्यक्रम होता।
हल्की फुल्की हंसी ठिठोली के बीच, एक दूसरे की टांग खींचने और तानाकशी करते हुए, उस दिन के खेल पर भी चर्चा चलती रहती थी।
आने वाले मैचों की तैयारियों और रणनीति पर भी गौर इसी दौरान कर लिया जाता।
हमारा एक तेज गेंदबाज दीपू , जो अभी कुछ दिनों पहले दूसरे शहर से आया था, उस समय नया होने की वजह से थोड़ा कम ही बोलता था।
माथे पर रुमाल बांध कर गेंदबाजी करता था ताकि उसका चश्मा गेंदबाज़ी के दौरान गिर न पड़े।
वैसे भी तेज गेंदबाज की ऊर्जा औरों के मुकाबले ज्यादा खर्च होती है, इसलिए खेल खत्म होने पर बातचीत में हिस्सा लेने की बजाय वो हमारे बीच पसर कर दुसरों के पांव तलाशता ताकि उसे तकिया बनाकर सर रख कर आराम कर सके।
कोई मना भी नहीं करता।
वो थोड़ी देर किसी के पांव पर सर रख कर आसमान को एक टक निहारता फिर आंखे बंद कर लेता। कुछ पूछने पर हाँ , हूँ में ही जवाब देता।
एक दिन ऐसा करते करते जब करीब १०-१५ मिनट हो गए, तो जिस खिलाड़ी के पांव को तकिया बना कर लेटा था वो पांव ही सो गया। जब उस खिलाड़ी ने अपने पांव को थोड़ा हिलाने डुलाने की कोशिश की तो उसकी आंख खुल गयी, उसने पूछा क्या हुआ, तो दूसरे खिलाड़ी ने उसे बताया,
वो उठकर दूसरी ओर आकर , उस खिलाड़ी के दूसरे पाँव पर सर रखकर लेट गया।
खिलाड़ी हल्के हल्के झटके देकर सोए हुए पाँव को ठीक कर ही रहा था, कि दीपू बड़ी मासूमियत से बोल पड़ा, भाई तेरा पाँव ठीक हो जाए तो बता देना।
मैं फिर उधर आकर ही लेट जाऊंगा क्योंकि इस तरफ आंखों पर थोड़ी थोड़ी धूप पड़ रही है ,फिर आँख बंद करके सो गया।
उसकी ये बात सुनकर सारे हंस पड़े।
दूसरे दिन जब वो खेल खत्म होने पर उस पेड़ के पास आ रहा था, तो कल वाला खिलाड़ी, एक ईंट लिए हाज़िर था और बोल पड़ा, जहाँपनाह आपका तकिया हाज़िर हैं, आप इस पर सर रख कर आराम फरमा सकते है।
फिर सब हंस पड़े,
एक दूसरे को समझने बूझने का खेल शुरू हो चुका था!!!