लाल पान का गुलाम
दो चचेरे भाई अलग अलग शहरों में जाकर पढ़ने लगे थे। साथ ही पले बढ़े थे, एक दूसरे से अच्छी तरह से वाकिफ भी थे।
कॉलेज का आखिरी साल था तो निश्चय किया कि परीक्षा शुरू होने के दो महीने पहले छुट्टियों में दोनों गांव आ जाएंगे और फिर साथ ही मिल कर तैयारी भी कर लेंगे।
घर वाले भी खुश थे कि यहां रहेंगे तो दोनों एक दूसरे की मदद भी कर पाएंगे, सबसे मिलना जुलना भी हो जाएगा।
दोनों तय समय पर गांव चले आये । शुरू के एक दो दिनों में एक साथ बैठ कर सारी योजना बनाई गई, विषयों के हिसाब से दिन भी निर्धारित किये गए। सब कुछ सूझ बूझ से गौर कर लेने के बाद पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि परीक्षा की तैयारी संतोषजनक तरह से पूरी हो जाएगी।
दो एक दिन निष्ठा से योजना पर अमल भी हुआ, तब तक पड़ोस के एक दो परिचितों को भी उनके आने की खबर लग चुकी थी।
रात को खाना खाने के बाद, दोनों घर के बाहर, गर्मियों के दिनों में बात करते हुए टहल ही रहे थे तो देखा पड़ोसी अपने बरामदे में बैठ कर “ट्वेंटी नाइन”(ताश का एक खेल)खेल रहे थे।
ये दोनों भी उत्सुकतावश वहां जाकर खड़े हो गए, उनको पास आके खड़ा होता देख , हाल चाल पूछा गया, फिर खेलने का आमंत्रण भी शिष्टाचार के नाते दिया गया।
दोनों भाई जम कर दो तीन घंटे खेले । अब तो रोज रात का नियम हो गया कि खाना खाते ही पड़ोसी के बरामदे में बैठ कर ताश खेलना।
कुछ दिनों के पश्चात , एक ने दूसरे को ये राज जाहिर किया कि
वाणिज्य शास्त्र की किताब निकाल कर जब पढ़ने बैठा तो पुस्तक खोलते ही लिखी हुई पंक्तिया धुंधली सी पड़ने लगी और लाल पान का गुलाम दिखने लगा।
दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा, फिर चार आंखों ने मिलकर एक साथ कहा, अरे तुम भी , मैंने सोचा ये मेरे अकेले के साथ हो रहा है।
दो परेशानियां एक सी होने पर अब दोनों के मन से बोझ थोड़ा हल्का हो रहा था।
साथ ही ये भी तय हुआ कि अब कुछ दिन पड़ोसियों के बरामदे को थोड़ा आराम दिया जाय, किताबें परायी सी लगने लगी थी।
परीक्षाएं भी तेजी से नज़दीक आनी शुरू हो गयी थी!!