इज्जत का संबोधन
बचपन में पास के मैदान में “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” की शाखा लगती थी।
बच्चों को तरह तरह के व्यायाम, खेलकूद , परेड मे बजने वाले
तरह तरह के वाघ यंत्रो को अपनी रुचि के अनुसार बजाना भी सिखाया जाता था।
रोज शाखा समापन के समय संस्कृत मे मातृ भूमि की प्रार्थना की जाती थी।
“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे”…………..
साथ में बच्चों को अच्छे संस्कार भी सिखाये जाते थे कि सबसे “जी” कहके बात करना चाहिए।
हम गांव के बच्चे तू तड़ाक के आदी हो चुके थे, नाम भी पुकारना हो तो थोड़ा बिगाड़कर ही बोलते थे।
खैर, शाखा चलने के दौरान तक तो किसी तरह अपने आप को संभाल लेते थे।
शाखा प्रमुख के जाते ही,
अबे मनोजिया जी, रुकिए न हम भी चलेंगे।
पप्पुआ जी , अबे सुनिए तो,जब दौड़ रहे थे तो आंख काहे दिखा रहे थे?
ये था हमारा इज्जत देकर बात करने का नया तरीका!!!