पहाड़े (गुणन-सूची)
हमारे जमाने में सौ से लेकर एक तक की उलटी गिनती और पहाड़े(किसी अंक की १ से लेकर १० तक के गुणन फलों की क्रमागत सूची) मौखिक और लिखित प्राथमिक शिक्षा का जरूरी हिस्सा थे।
रोज विद्यालय की छुट्टी होने के आधे घंटे पहले, हमारे शिक्षक या कोई प्रतिभाशाली छात्र २ से २५ तक के पहाड़े एक एक करके बोलते थे और सारा विद्यालय उनके पीछे पीछे दोहराता था।
इस प्रक्रिया की गूंज दूर तक सुनाई देती थी।
लोगों को पता भी चल जाता था कि बस थोड़ी देर में स्कूल की छुट्टी होने वाली है।
मैंने भी रो पीट कर किसी तरह २५ तक के इन पहाड़ों को याद कर ही लिया।
बस कभी कभी १८×९=१६२ की जगह १५२ बोल देता था, ये १९×८ के इस गुणन फल से क्यों टकरा जाता था, ये तो ये ही जाने।
फिर जब थोड़ी खोजबीन की तो पता चला सारी गलती , कमबख्त इस छोटे से १ की होती थी, जो बच्चों की तरह १८ के पीछे से निकल कर ९ के पीछे छिपकर उसे १९ बना देता था।
और बेचारे दिमाग को चकरा देता था।
इससे निपटने के लिये फिर मैंने अपनी मौखिक प्रक्रिया के पीछे असल गुणन फल को भी लगा दिया, ताकि दोनों एक ही खबर ले कर आएं।
फिर एक दिन पता चला कि दूसरे एक दो विद्यालयों में तो ४० तक के पहाड़े पढ़ाये जाते , है तो मैंने अपने अभिभावकों का धन्यवाद किया कि उन्होंने मुझे इस सरकारी विद्यालय में पढ़ाने का फैसला लिया।
एक दिन बुज़ुर्ग रिश्तेदार ने बताया कि उनके जमाने में तो किसी अंक के १ से १० के गुणन फ़लों के अलावा अंक का सवाई, डेढ़ और अढाई भी याद कराया जाता था, फिर मैंने भगवान को भी प्रणाम किया मुझे मेरे ही जमाने में पैदा करने के लिए।
खैर , ये तो थोड़ी मजाकिया बात हो गयी,
आज भी ,प्रारंभिक अंक गणित समझने की इस मौखिक प्रक्रिया का मैं कायल हूँ।
आजकल के बच्चों को ये बातें पढ़कर अज़ीब भी लगे पर विद्यालय की छुट्टी से पहले रोज होने वाली कवायद कारगर तो थी।
किसी बड़े नेता के हमारे गांव में आने से पहले जब सुरक्षामूलक कदम उठाए जा रहे थे, तो मेरे एक सहपाठी ने मजाक में बोला था, आज शाम को मत निकलना, बाहर २४×६=१४४ धारा लगी हुई है!!!