गांव की पगडंडियां
‘गांव की पगडंडियां’
विद्या – छंद मुक्त
दिन- रविवार
दिनांक -25/3/18
सुन,गांव से आई *सीली-सीली बासंती *बाल।
पूछा मैंने,बता, क्या मेरे *गाम का *स हाल ?
क्या अब भी वैसा ही है मेरा हरियाला *गाम !
क्या अब भी रहती है पगडंडियों पर *छांह?
क्या अब भी दढियल *बड़ के नीचे चौपालें चलतीं हैं?
बूढ़े दादा की *खाट,क्या अब भी वहीं *घलती है?
क्या बूढी दादी *डोग्गा ले *तड़के-तड़क टहलती है?
हुक्के की लुभानी खुशबू क्या अब भी वहां फैलती है?
बोली मुस्का कर हो अचंभित मुझसे, मेरे गांव की शीतल हवा।
तुझको तो नीलम,नहीं गांव पसंद था,आज अचानक क्या हुआ?
किसी को याद आती है नानी और तुझे याद आई दादी अौर बुआ।
बचपन में जो नापसंद था, भला उस गांव ने कैसे अौर क्यों छुआ?
लाजवाब देख हाजिरजवाब को,पुर्वा बोल उठी तत्काल।
कैसे शांत हुई तू, चहकती चंचल चिड़िया,बता क्या तेरा है हालचाल?
मैंने नज़र झुकाकर बोला, हूं खुश परिवार सहित फिलहाल।
पर शहर में प्रदूषण ने मचा रखा है अतिशय प्रचंड बबाल
शहर की आबोहवा में भरा जहर है, नित आगे बढ़ रहा काल l
आज मानवता से पूछ रहे , सब प्राकृतिक तत्व सवाल l
समयतालिका बदली ऱितुओं की, बदल गई गति चाल l
लाइलाज बीमारियों ने किया बुरा, बच्चे बूढों का हाल l
नीलम शर्मा
शब्दों के सरलार्थ-
*सीली-सीली( ठंडी-ठंडी) *बाल(हवा) *गाम(गांव) *स (है), बड़ (बरगद का पेड़),डोग्गा ( सहारे वाला डंडा),खाट(चारपाई), तड़के तड़क ( सुबह सुबह),तने( तुम्हें),अर(और), पहल्यां (पहले),