सुकूनभरी अंगीठी (कविता)
बिना कौतूहल शोरगुल के
गांव की बिंदास जिंदगी का
आनंद ही कुछ और है दोस्तों
ठंड के खुशनुमा मौसम में
अंगीठी पर मां के साथ
हाथ सेंकने का सुख ही
कुछ और है दोस्तों
शहर में तो घुटन होने लगी है
हर आदमी में होड़ मची है
न वक्त है किसी के पास
न ही आत्मीयता का आभास
जीने के लिए पल भर सुकून की
तलाश में क्यों फिरते हो दोस्तों
कभी तो ;बटोरने जाओ गांव
सुकून भरी जिंदगी का लुत्फ उठाने
किसानों की मेहनत से लहलहाती
फसलों को निहारने का मजा ही
कुछ और है दोस्तों
कभी तो खेतों की ताजी सब्जी,
फल, अनाज का भी मजा उठा लो
पिकनिक मनाने ही सही
कभी भूले-बिसरे गांवों में भी
घूम आया करो दोस्तों
भिनी-भिनी थिरकती ठंड के
मौसम में हाथ सेंकने अंगीठी
सुलगाने का मजा ही
कुछ और है दोस्तों
शहर की थकानभरी हलचल से
शांति पाने की इच्छा हो अगर मन में
पहुंच जाओ गांव थम जाएंगे पांव
मां के हाथ की चुल्हे की मक्के की रोटी
सरसों का साग, दाल-बाफले-बाटी का
शांति स्वरूप खाने का आनंद भी
लिया करो कभी-कभी
यह लुत्फ समय रहते उठा लो दोस्तों
इस सुकूनभरी ज़िंदगी का
मजा ही कुछ और है