गांव और वसंत
गांव और वसंत –
सुन गांव कि गोरी तू बड़ी भोली बहती वासंती वयार अभिलाषा गहराई उफान।।
सुन गांव की गोरी हृदय हर्ष सेअनजान तेरी सादगी कोमलता तेरी पहचान।।
गाँव तेरा जैसे इंद्र देव निवास लहलाते खेत खिलहान प्रसन्न प्रफुल्लित किसान वसंत कि बान।।
मुर्झाए चेहरों भी खिल उठते आने वाली खुशियो का आभास झूमती खेतो में बाली पीले फूल सरसो के वसंत मान।।
जीवन जीवंत वसंत का भान माँ सरस्वती कि बेटी जैसी बैभव कि देवी जैसी वसंत बैभव अभिमान।।
सतरंगी होली कि मस्ती गांव गलियों कि हस्ती बूढ़ा नही दिखे अब कोई हर जीवन जवान।।
वसंत की शान सुबह सूरज के संग बहती मंद बयार प्रकृति त्यागती वर्ष पुराने परिधान।।
वसंत ऋतु मात्र नहीं जीवन उत्सव उत्साह उद्भव उद्गम संचार
पवन पर्व कि आहट मानव खुशियों का प्रवाह।।
रंग वसंती धीरे धीरे बढ़ता चढ़ता मानव हृदय स्पंदित करता नैसर्गिक खुशियों का वसंत वरदान।।