गांधी और गोडसे का फर्क!
साबरमती के सन्त तुम,
हमें क्या नहीं दे गये,
फिर भी आज लोग,
हैं तुझे कोस रहे!
अहिंसा का पाठ पढ़ा कर,
हम निहत्थों को सबल किया,
हिंसा से परहेज़ बता कर,
अहिंसा का मार्ग प्रशस्त किया,
दीन हीन की पीड़ा को,
अपने तन-मन में समाहित किया,
एक लंगोटी तन पर धार,
गरीब गुरबों का प्रतिनिधित्व किया,
स्वराज्य का सपना देकर,,
जन गण के मन को तैयार किया,
धर्म संप्रदाय से परे हटकर,
सर्व धर्म समभाव का बोध किया,
निज धर्म को कभी त्यागा नहीं,
राम नाम का सदैव जाप किया,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,
सबको भाई होने का अनुरोध किया,
अंग्रेजों का किया विरोध डटकर,
पर ना कभी उनका अपमान किया,
हर किसी मानव देह में,
तूमने प्रभु श्री का दर्शन किया,
अपने जीवन में तुमने,
हर आदर्श को प्रस्तुत किया,
मत-मतांतर होने पर भी,
अपने आलोचकों को स्वीकार किया,
माना कि आजादी पाने में,
सिर्फ तुम्हारा ही योगदान नहीं,
तिलक गोखले और लाला जी,
इस मुहिम में संग संग रहे,
नेहरु पटेल तो अनुयाई ही थे,
शेखर भगतसिंह भी मुरीद रहे,
नेताजी सुभाष तो थे ही समकक्ष,
मतैक्य के बाद भी करीब रहे,
हर किसी का तुमने सम्मान किया,
चाहे वह सावरकर भी थे,
नहीं किसी को नीचा समझा,
ऊंच नीच से परे रहे,
जात-पात और छुआछूत, को,
ना कभी स्वीकार किया,
भीमराव अम्बेडकर जी को,
पद प्रतिष्ठित करा दिया,
कर्मकाण्डी बा-कस्तुरबा को,
अपने अनुरुप ही ढाल दिया,
आडंबर का सदैव विरोध किया,
देश हित व लोकहित में,
ना कभी समर्पण किया,
फिर भी उन लोगों ने,
तुम्हें हमसे छीन ही लिया,
आज वह फिर से तुम्हें,
हमसे छीनना चाहते हैं,
देह को तो पहले ही छीन चुके,
अब विचारों को भी लील लेना चाहते हैं,
हत्यारे को करते हैं महिमा मंडित,
तुम्हें देश विभाजक कह रहे,
गोडसे की करते हैं जय जय कार,
और गांधीजी तुम्हें हैं कोस रहे,
नेहरु पटेल में मतभेद बताकर,
एक दूजे की आत्मा को झकझोर रहे,
गांधी गोडसे का लेकर तिलिस्म,
जन जन में भेद भर रहे,
नये नये मिथक गढ़ कर,
जन-मानस को मथ रहे,
हम गांधी को महात्मा हैं कहते,,
वो गोडसे को पूज रहे,
विश्व समुदाय भी जिसे प्रासंगिक समझते,
आज उसी की विचारधारा से,
वह दिग्भ्रमित होकर विचर रहे,
गांधी वाद शास्वत सत्य हैं,
गांधी जी सदैव को अमर हुए,
गोडसे की विचारधारा में
खुन खराबे की डगर है!!