गांधारी
गांधारी
धृतराष्ट्र था अंधा जन्मजात,
सजीव नैनो के साथ
ओ गंधारी!
तुमने क्यों चुना अंधकार।
हम नहीं करना चाहते
प्रताड़ित धृतराष्ट्र को
वह बेचारा था किस्मत का मारा,
तुम तो बन सकती थी,
अंधे धृतराष्ट्र का सहारा।
क्यों बंद कर ली तुमने
अपनी खुली आंखें
क्यों कतर डाली स्वत: ही
तुमने अपने ही मन की पांखें,
यह कैसा पति धर्म निभाया
दिव्यांग का सहारा ना बन
तुमने खुद को पंगु बनाया
आंखों पर पट्टी बांधने का चयन
कहीं से भी नहीं था उचित
ना धर्म ना आस्था का प्रश्न
आंखें रहते अंधा बनने का कदम
बन गया बुनियाद महाभारत का
रक्त रंजित इतिहास का वरण ।
नहीं देख सकता था धृतराष्ट बंद आंखों से
अपनी संतानों का कुमार्गगामी होना
तुम तो रख सकती थी नज़र,
संतान के चाल,चलन और चरित्र पर
आंखों पर पट्टी बांध तुमने किया
घोर अधर्म अपनी ममता के साथ
राष्ट्र और समाज के साथ
और साथ ही इतिहास के साथ।
क्यों नहीं दिये संस्कार संतति को
क्यों किया पलायन संतति धर्म से
महाभारत का पाप क्यों लिया सिर
अपनी आंखों पर पट्टी बांध तुमने
अपनी संतान का भविष्य मसल डाला
न उसे कोई राह दिखाई न कोई दिया संस्कार
नहीं रहा उन्हें कर्तव्य का अहसास
उनका जुनून था केवल अधिकार
कौरव और पांडव थे तो
एक ही पूर्वज के जाये
एक ही गुरु के पढ़ाये -लिखाये
फिर क्यों थे पांडव इंसानियत के अवतार
कौरव सोच रहा थे केवल और केवल अधिकार
गिरते गये विचलन के गर्त में अबाध।
धिक्कार रहा तुम्हें इतिहास
धिक्कार रही तुम्हें शतियां
धिक्कार रही तुम्हें
अपनी ही संततियां
नहीं उन्हें कोई सार्थक रास्ता दिखाया
युद्ध की हिंसा में उन्हें हविष्य बनाया
अगर तुम अपनी आंखें खुली रखती
कुंती की तरह तुम भी सुमाता बनती
संतान मोह त्याग नया इतिहास जनती
नारी- कुल के लिए एक उदाहरण बनती।।