गाँव से शहर
पूरब की धरा में पल्वित ,
पश्चिम का पनपा ये कन्द ।
गाँव से शहर तक पसरा ,
मान मर्यादा कर रहा मन्द ।
प्राचीन प्रथा बिसरा रहा ,
कागा हो रहे अब सदानन्द ।
अलसाई न्याय की माता ,
पिसते है मजलूम वृन्द ।
चहुँ दिश छाए घूस मेघ ,
वरुण देव बँटवा रहे रिन्द ।
जलता नहीं गरीब का चूल्हा,
सगा नहीं अपना फरजन्द ।
कुँवारी बेटी घर बैठी ,
बिन दहेज नहीं मिलता कन्त ।
मंहगाई सुरसा हो रही ,
दूजे हड़ताल और बन्द ।
चीर -हरण गली-चौराहा ,
आओ अब यशोदा के नन्द ।
शेख जाफर खान