गाँव सहर मे कोन तीत कोन मीठ! / MUSAFIR BAITHA
कहई छी गाँव हमरा तनिको न सोहाय
कनखे दुब्बरो जात-भात के बल पर मोटाय
अन्हरा पोठिया टेंगरा सेहो टेढ़िआए गुर्राए
सहर में तनी मनी बचे के हैबो करई उपाय
गाँव में बड़ा कठिन रहला-सहला हो भाय
कइसे कोई भलादमी अप्पन इज्जत बचाय
सहर में गुज्जर तS नेम-कानून संभवो कराये
देहात में जाति-दबंग कानूने के दांती लगाय
ओकरा ताखा पर रख के ठिठियाय मुसकाय
निम्मन तS वोइसे न सहरे हई न गांवे हई
माय न बाप जेकरा कोन कहाँ पूछई छई
कमजोर के डेंग डेंग पर गाँव में परेसानी हई
गरीब के घरबाली सबके भउजाई होई छई