गाँव में गाँव मै ढूंढता रह गया!
गाँव में गाँव मैं ढूंढता रह गया!
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गाँव में गाँव मैं ढूंढता रह गया।
बीती तस्वीर में खोजता रह गया।
आज मौसम भी लगता है बदला यहाँ-
अब अदब आज बस खोखला रह गया।
जिन पगडंडियों से चले हम कभी-
आज कंकड़ भरी वेदना रह गया।
लाज शर्मों हया थी यहाँ की कसीश-
आज नजरों को बस कामना रह गया।
वो पंगत वो रंगत वो बात आपसी-
आज मिट सा गया फासला रह गया।
लोग गाँवों में कम, भागते है शहर-
आज गाँवों में बस बिस्तरा रह गया।
गाँव अपना वहीं पर वो रौनक नहीं-
“सचिन” दकियानूसी कायदा रह गय।
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✍✍पं. संजीव शुक्ल “सचिन”